कृंतकों की प्रमुख लाक्षणिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. इनमें श्वदंतों (Canines) तथा अगले प्रचर्वण दंतों की अनुपस्थिति के कारण दंतावकाश (Diastema) पर्याप्त विस्तृत होता है।

2. केवल चार कर्तनक दंत (Incisors) होते है-दो ऊपर वाले जबड़े में और दो नीचेवाले जबड़े में। दाँत लंबे तथा पुष्ट होते हैं और आजीवन बराबर बढ़ते रहते हैं। इनमें इनैमल (Enamel) मुख्य रूप से अगले सीमांत पर ही सीमित रहता है, जिससे ये घिसकर छेनी सरीखे हो जाते हैं और व्यवहार में आते रहने के कारण आप ही आप तीक्ष्ण भी होते रहते हैं। कुतरने के लिए इस रीति के विकास के अतिरिक्त कृंतक स्तनधारी ही कहे जा सकते हैं।

3. अधिकांश स्तनधारी अपना भोजन मनुष्य के समान चबाते हैं। चबाते समय निचला जबड़ा मुख्य रूप से ऊपर की दिशा में ही गति करता है। कृंतकों में इसके विपरीत चर्वण की क्रिया निचले जबड़े की आगे पीछे की दिशा में होनेवाली गति के परिणामस्वरूप होती है। इस प्रकार की गति के लिए हनुपेशियाँ बलशाली तथा जटिल होती है।

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