शरीर में ग्रसनी कहाँ होती है?
ग्रसनी मुँह को चौड़ाकर, जिह्वा को चम्मच के हैंडिल या किसी यंत्र से दबाने पर, उसके पीछे जो चौड़ा, भाग दीखता है वह ग्रसनी कहा जाता है। डाक्टर लोग परीक्षा करते समय किसी टार्च, या सिर पर बंधे हुए दर्पण, से प्रकाश डालकर उसको आलोकित करके देखते हैं, जिससे वहाँ की प्रत्येक संरचना प्रत्यक्ष हो जाती है। यह वास्तव में उस बृहन्नाल का प्रारंभिक भाग है जो सामने ऊपर की ओर नासिका और नीचे की ओर मुख से आरंभ होती है। ऊपर दोनों नासारध्रं अपने पिछले द्वारों द्वारा और नीचे मुखगुहा (mouth cavity) ग्रसनी में खुलती है, जिससे नासारध्राेंं द्वारा आई हुई वायु और मुख से आया हुआ आहारग्रास दोनों ग्रसनी में पहुँचकर वहाँ से अपनी यात्रा में आगे को अग्रसर होते हैं। वायु कंठ या स्वरयंत्र में होकर फुफ्फुसों में चली जाती है और आहारग्रास ग्रासनाल में होता हुआ आमाशय में चला जाता है। इस प्रकार ग्रसनी के ऊर्ध्व भाग में भी दो गुहाएँ या नलियाँ आकर खुलती हैं, नासारध्रं और मुखकुहर, और नीचे के भाग से भी दो नाल आरंभ होते हैं : एक श्वसनाल (Trachea), जिसके शिखर या ऊर्ध्व भाग पर कंठ स्थित है और दूसरा ग्रासनाल (Oesophagus)
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