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मानव टैंपेनिक झिल्ली का सामान्य नाम क्या है?
कान का पर्दा किसी ड्रम (जैस ढोलक) के पर्दे जैसा एक तना हुआ पर्दा होता है। तने होने से कम्पनों को ग्रहण करने में मदद मिलती है। मध्य कान की छोटी छोटी हडि्डयों की शृंखला कान के पर्दे से इन कम्पनों को लैबरिंथ तक पहुँचाती हैं। बार बार होने वाला संक्रमण कई बार इस शृंखला को बरबाद कर देता है। इससे हमेशा के लिए बहरापन हो जाता है।
कान के तीन भाग होते हैं। कीप जैसी कर्णपाली और कान के पर्दे तक जाने वाले नलीनुमा रास्ते को बाहरी कान कहते हैं। यहॉं कर्णमल (मोम) व बाहरी कण इकट्ठे होते हैं। मध्य कान कान के पर्दे और अन्त कर्ण की शंख (लेबरिंथ) के बीच होता है। अन्तकर्ण हडि्डयों में स्थित होता है। यह शंखकृति अंग ध्वनि (आवाज़) की तरंगों और शरीर की मुद्राओं यानि खड़े होने, लेटने व बैठने आदि के बदलावों को तंत्रिकाओं के संकेतों में बदल देता है। सुनाई देने के लिए बनी तंत्रिका (आठवीं मस्तिष्क तंत्रिका) ये संकेत दिमाग तक पहुँचाती हैं।
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