तंदूर: अगर खाने पकाने की कोई एक तकनीक और उपकरण है जिससे 1000 तरह के खाने पकाए जा सकते हैं, तो वह तंदूर है. इसे पुराने ज़माने में तोनीर कहते थे.

इसमें संदेह नहीं कि तंदूर मुग़लों के समय भारत में काफ़ी लोकप्रिय था और ख़ासतौर पर जहांगीर के वक़्त एक से दूसरी जगह ले जाने वाले हल्के तंदूर विकसित हुए.

लेकिन पहला तंदूर, जिसका ज़िक्र प्राचीन यात्रावृतांतों और किताबों में है, वह ज़मीन के नीचे होता था और तुग़लकों के रसोईघर में कबाब और नान बनाने में इस्तेमाल होता था.

ज़मीन के नीचे का यह तंदूर आर्मीनियाई तोनीर की याद दिलाता है. यह आज के ओवन की तरह काम करता था.

इस नज़रिए से यह मुग़ल नहीं बल्कि आर्मीनियाई हैं, जिन्होंने हमें तंदूर दिया.

इससे बिल्कुल इनकार नहीं कि मुग़लों ने बाद में इसे अफ़ग़ान तंदूर के साथ मिलाकर नया स्वरूप दिया और सांझा चूल्हा बनाने में मदद की जो एक पंजाबी तंदूर है.

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