विज्ञापन
हवाओं का कारण क्या है?
तिशील वायु को पवन कहते हैं। यह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समानांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और २०० मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं।जब किसी स्थान और ऊँचाई के पवन का निर्देश करना हो तब वहाँ के पवन की चाल और उसकी दिशा दोनों का उल्लेख होना चाहिए। पवन की दिशा का उल्लेख करने में जिस दिशा से पवन बह रहा है उसका उल्लेख दिक्सूचक के निम्नलिखित १६ संकेतों से करते हैं :उ (N), उ उ पू (N N E), उ पू (N E), पू उ पू (E N E), पू (E), पू द पू (E S E), द पू (S E), द द पू (S S E), द (S), द द प (S S W), द प (S W), प द प (W S W), प (W), प उ प (W N W), उ प (N W) और उ उ प (N N W)
अधिक यथार्थता से पवन की दिशा बताने के लिए यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त दिशा में परिवर्तन (जैसे उ से उप और प) का विपरीत पवन कहते हैं।वेधशाला में पवनदिक्सूचक नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक महत्वपूर्ण एवं प्रचलित हैं।
और जानकारी:
hi.wikipedia.org
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन